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मंत्रालय के विषय में

भारत सरकार, भारत तथा उसके हर भाग की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेवार है । सशस्त्र सेनाओं की सर्वोच्च कमान राष्ट्रपति के पास निहित होती है । राष्ट्रीय सुरक्षा की जिम्मेवारी मंत्रिमंडल के पास निहित होती है । यह जिम्मेवारी रक्षा मंत्रालय के जरिए निभाई जाती है जो सशस्त्र सेनाओं को देश की सुरक्षा के संबंध में उनकी जिम्मेवारी निभाने के लिए नीति संबंधी ढांचा तथा साधन उपलब्ध कराता है। रक्षा मंत्री रक्षा मंत्रालय के प्रमुख होते हैं। रक्षा मंत्रालय का मुख्य कार्य रक्षा और सुरक्षा संबंधी सभी मामलों पर सरकार के नीति-निर्देश प्राप्त करना तथा उन्हें लागू करने के लिए सेना मुख्यालयों, अंतर-सेवा संगठनों, उत्पादन स्थापनाओं तथा अनुसंधान एवं विकास संगठनों को सूचित करना है । उससे यह भी अपेक्षित है कि वह सरकार के नीति – निर्देशों का प्रभावी कार्यान्वयन तथा आवंटित संसाधनों के भीतर अनुमोदित कार्यक्रमों का निष्पादन सुनिश्चित करें । रक्षा मंत्रालय में चार विभाग हैं अर्थात रक्षा विभाग, रक्षा उत्पादन विभाग, रक्षा अनुसंधान तथा विकास विभाग और भूतपूर्व सैनिक कल्याण विभाग तथा इनके अलावा वित्त प्रभाग भी ।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

कोलकाता में ईस्ट इंडिया कंपनी की सर्वोच्च सरकार में वर्ष 1776 में एक सैन्य विभाग बनाया गया था जिसका मुख्य कार्य ईस्ट इंडिया कंपनी सरकार के विभिन्न विभागों द्वारा जारी किए सेना से संबंधित आदेशों की पूर्णतया जांच करना तथा उन्हें रिकार्ड करना था । सैन्य विभाग ने शुरू में लोक विभाग की एक शाखा के रूप में काम किया और सेना कार्मिकों की सूची बनाए रखने का काम किया ।

1883 के चार्टर अधिनियम के अनुसार ईस्ट इंडिया कंपनी की सरकार के सचिवालय को एक सैन्य विभाग सहित चार विभागों में पुनर्गठित किया गया था जिनमें से प्रत्येक विभाग का प्रमुख सरकार का एक सचिव था । बंगाल, बम्बई और मद्रास प्रेसीडेंसियों में सेना ने अप्रैल, 1895 तक संबंधित प्रेसीडेंसी की सेना के रूप में काम किया और तब से उन्हें एक एकल भारतीय सेना के रूप में एकीकृत कर दिया गया था । प्रशासनिक सुविधा के लिए इसे चार कमानों अर्थात पंजाब (उत्तर-पश्चिम फ्रंटियर सहित), बंगाल, मद्रास (बर्मा सहित) तथा बम्बई (सिंध, क्वेटा तथा अदन सहित) में विभाजित किया गया था । भारतीय सेना के ऊपर सर्वोच्च प्राधिकार सम्राट के नियंत्रण के अध्यधीन, जिसका प्रयोग भारत के लिए सेक्रेटरी ऑफ स्टेट द्वारा किया जाता था, गर्वनर जनरल-इन-काउंसिल के पास निहित था । परिषद में दो सदस्य सैन्य कार्यों के लिए जिम्मेवार थे, जिनमें से एक सैन्य सदस्य था, जो सभी प्रशासनिक तथा वित्तीय मामले देखता था जबकि दूसरा कमांडर-इन-चीफ था जो सभी संक्रियात्मक मामलों के लिए जिम्मेवार था । सैन्य विभाग मार्च 1906 में समाप्त कर दिया गया और इसे दो विभागों द्वारा प्रतिस्थापित कर दिया गया था अर्थात, सेना विभाग और सैन्य आपूर्ति विभाग । अप्रैल, 1909 में सैन्य आपूर्ति विभाग समाप्त कर दिया गया था और इसके कार्यों का प्रभार सेना विभाग ने ले लिया था । सेना विभाग को जनवरी 1938 में रक्षा विभाग के रूप में पदनामित कर दिया गया था । अगस्त 1947 में रक्षा विभाग एक केबिनेट मंत्री के अधीन रक्षा मंत्रालय बन गया ।

संगठनात्मक ढांचा तथा कार्य-कलाप

स्वतंत्रता के बाद एक मंत्रिमंडल सदस्य के प्रभार के अंतर्गत रक्षा मंत्रालय बनाया गया तथा प्रत्येक सेना को उसके एक कमांडर-इन-चीफ के अधीन रखा गया । 1955 में कमांडर-इन-चीफों के नाम बदलकर क्रमशः थलसेनाध्यक्ष, नौसेनाध्यक्ष तथा वायुसेनाध्यक्ष रख दिया गया । नवंबर 1962 में रक्षा उपस्करों के अनुसंधान, विकास तथा उत्पादन के कार्यों को देखने के लिए रक्षा उत्पादन विभाग गठित किया गया । नवंबर 1965 में, रक्षा आवश्यकताओं के आयात प्रतिस्थापन के लिए योजनाएं बनाने तथा उन्हें कार्यान्वित करने के लिए रक्षा पूर्ति विभाग बनाया गया । बाद में इन दोनों विभागों को मिलाकर एक रक्षा उत्पादन तथा पूर्ति विभाग बना दिया गया । 2004 में रक्षा उत्पादन तथा पूर्ति विभाग का नाम बदलकर रक्षा उत्पादन विभाग कर दिया गया । 1980 में रक्षा अनुसंधान तथा विकास विभाग बनाया गया । 2004 में भूतपूर्व सैनिक कल्याण विभाग बनाया गया ।

रक्षा सचिव, रक्षा विभाग के प्रमुख के रूप में कार्य करता है और वह अतिरिक्त रूप से मंत्रालय के चारों विभागों के कार्य-कलापों में समन्वय बनाने के लिए भी जिम्मेवार है ।

विभाग

मंत्रालय का प्रमुख कार्य रक्षा और सुरक्षा संबंधी मामलों पर नीति संबंधी निदेश तैयार करना और उन्हें कार्यान्वयन हेतु तीनों सेना मुख्यालयों, अंतर-सेवा संगठनों, उत्पादन स्थापनाओं तथा अनुसंधान एवं विकास संगठनों को सूचित करना है । इससे यह भी अपेक्षित है कि वह सरकार के नीति – निर्देशों का प्रभावी कार्यान्वयन तथा आवंटित संसाधनों के भीतर अनुमोदित कार्यक्रमों का निष्पादन सुनिश्चित करें।

  1. रक्षा विभाग:
    रक्षा विभाग, एकीकृत रक्षा स्टाफ (आई डी एस) और तीनों सेनाओं तथा विभिन्न अंतर सेवा संगठनों संबंधी कार्य करता है । यह विभाग रक्षा बजट, स्थापना संबंधी मामलों, रक्षा नीति, संसद संबंधी मामलों, विदेशों के साथ सहयोग और रक्षा संबंधी सभी कार्य-कलापों के समन्वय के लिए भी जिम्मेवार है ।
  2. सैन्य कार्य विभाग (डीएमए): सैन्य कार्य विभाग के प्रमुख चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) हैं और यह विभाग संसाधनों के इष्टतम उपयोग को सुविधाजनक बनाने और तीनों सेवाओं के बीच संयुक्तता को बढ़ावा देने के लिए बनाया गया है।
  3. रक्षा उत्पादन विभाग:
    रक्षा उत्पादन विभाग के प्रमुख एक सचिव हैं और यह विभाग रक्षा उत्पादन, आयातित सामानों उपस्करों तथा अतिरिक्त हिस्से-पुर्जों के स्वदेशीकरण, आयुध निर्माणियों तथा सार्वजनिक क्षेत्र के रक्षा उपक्रमों की विभागीय उत्पादन यूनिटों की आयोजना एवं नियंत्रण का कार्य करता है ।
  4. रक्षा अनुसंधान तथा विकास विभाग:
    रक्षा अनुसंधान तथा विकास विभाग के प्रमुख एक सचिव हैं । इसका कार्य सैन्य उपस्करों और संभारिकी के वैज्ञानिक पहलुओं पर सरकार को सलाह देना और सेनाओं द्वारा अपेक्षित उपस्करों के लिए अनुसंधान, डिज़ाइन तथा विकास योजनाएं तैयार करना है ।
  5. भूतपूर्व सैनिक कल्याण विभाग:
    इस विभाग के प्रमुख एक सचिव हैं और यह विभाग भूतपूर्व सैनिकों के पुनर्वास, कल्याण तथा पेंशन संबंधी सभी मामलों संबंधी कार्य करता है।